Syāha dina, sapheda rāteṃ

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Ayana Prakāśana, 2006 - Hindi fiction - 206 pages

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12
Section 2
19
Section 3
44
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अचानक अन्दर अपनी अपने अब आंखों आई आगे आया आवाज़ इस उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक और कई कम कर करके करते करने कहा का काम किया किसी की ओर कुछ के बाद के लिए के साथ केवल कोई क्या क्यों गई गए गया था घर चला चाय जब जा जाने जी जो ठीक डॉक्टर साहब तक तो था और था कि थी थीं थे थोड़ा दिन दिनेश दिया देख देर दोनों नहीं है निकल पटना पर पाण्डे पास पुष्पा प्रीतम फिर फिल्म बम्बई बहुत बात बातें बार बाहर भरत भी मधु मधु के मन मानो मालती में मैं मोहिनी यह यहां या रमेश को रमेश ने रहा था रहा है रही थी रहे लगा लिया ले लेकिन लोग लोगों वह वे शायद शेखर शोभा देवी सब सा सामने सिर सुधा सुधाकर से हाथ ही हुआ हुई हुए हूं हैं हो गई हो गया होकर होने

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