Āja taka kī: Hindī-kavitā, '61-'66: samakālina Hindī-sāhitya kā eka taṭastha adhyayana

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Śrī Gaṇapata Prakāśana, 1967 - Hindi poetry - 94 pages

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8
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33
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१६६६ अंग्रेजी अज्ञेय अनुभूति अपनी अपने अब इन इस इसकी इसके इसमें इसलिए इसलिये इसी उनके उर्दू उर्वशी एवं कथा कबीर कर करता करने कवि कवि की कविता के कविता में कविताएँ कवियों का कारण काव्य काव्य की काव्य में किया है की कुछ को कोई क्या गई गया गीत गुप्त चिंतन चेतना जगदीश गुप्त जब जा जाती जीवन जो तक तथा तुक तो था थी थे दर्शन दिनकर दो दोनों द्वारा नई नहीं है निराला ने पंत पर परन्तु प्रकार प्रति प्रभात प्रसाद फिर बहुत बांसुरी बात बाद महाकाव्य माखनलाल मिश्र में भी मैं यह यही या युग ये रचना रस रहा है रही रहे हैं रामधारी सिंह दिनकर लिये वरन् वर्त्तमान कविता वह विवेक व्यक्त शक्ति शब्द शब्दों सकता है सकती सदी सन् सभी समाज साथ साहित्य सिंह से स्वयं स्वर हमारे हिन्दी कविता ही नहीं हुआ हुई हुए हूँ है और हैं हो होता होती है

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