Kāśikā: 1.3-2.2

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Tārā Priṇṭiṅga Varksa, 1986 - Sanskrit language
Commentary, with supercommentaries, on Aṣṭādhyāyī by Pāṇini, ancient aphoristic work on Sanskrit grammar; includes text.

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अतः अत्र अथ अन्यथा अर्थ में अष्टाध्यायी आदि आह इति इति किम् इत्यत्र इत्यर्थः इस विग्रह में इह उदा० एक एव और कथं करता है करने कर्ता कर्म कर्मणि का किं किया की के कारण के लिये के साथ को क्या फल है क्रियते क्रिया ग्रहणं चाहिये जाता है जो तत् तत्र तथा तदा तर्हि तस्य तु तृतीया तेन तो दर्शयति देवदत्त दोनों द्वितीया धातु से न तु न भवति न स्यात् न हि ननु च नहीं है नहीं होता है न्यासः पदमञ्जरी पर परस्मैपद परिभाषा पा० सू० पाणिनि पुनः पुरुष प्रकार प्रति प्रत्यय प्राप्त प्राप्नोति भवतीति भविष्यति भावः भावबोधिनी भी म० भा० मा यत्र यथा यदा यदि यस्य यह यहाँ ये रहने पर रूप वर्तते वर्त्तते वह वा वा० वाला विधीयते विमर्श व्याकरण शब्द संज्ञा सति समासः समास होता है समासो सह सूत्र से स्यात् हि ही हैं है और हो होती होने से

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