Ādhunikatā aura Hindī sāhitya

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Rājakamala Prakāśana, 1973 - Hindi literature - 219 pages

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अज्ञेय अधिक अन्त अपनी अपने अब आज आदमी आधुनिकता का बोध इतना इन इनकी इस तरह इसका इसकी इसके इसमें इसलिए इसी इसे उपन्यास उस उसकी उसके उसे एक कभी कर करता है करना करने कविता में कहानी के कहानी में का है कालिदास किसी की कहानी की कोशिश की गवाही की तरह की दृष्टि की बात की स्थिति की है कुछ के लिए को उजागर क्या गया है घर जब जा सकता है जाता है जाती जाने जिस जिसे जीवन तक था दिया दृष्टि से देता है देती देने दोनों दौर नहीं है नाटक नाम नामवर सिंह ने पर परिवेश पहचान पहले प्राधुनिकता बाहर भी भुवनेश्वर में आधुनिकता का में भी में है मैं यह रहा है रही लगता है लगती लेकिन वह वास्तव शायद सकती सब समकालीन सवाल साथ से ही हुआ है है और है कि है जो है या हैं होकर होता है होती

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