Eka nadī be-ghāṭa kīĀrmī Pabliśiṅga Hāusa, 1971 - 160 pages |
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अपना अपनी अपने अब अभी आंखों आज आप आया इस उठी उनके उस उसका उसकी उसके उसके मन उसने उसे एक दूसरे एक बार ऐसा और कभी कमरे करने कविता कह कहा कहीं का किया किसी कुछ के बाद के लिये के साथ को कोई क्या क्यों गई गये घर चाचा छबी छबी ने जब जा रही जाने जी जीवन जैसे जो ट्रेन तक तरह तुम तुम्हारे तुम्हें तो था कि थीं दिन दृष्टि दे देख देर दो दोनों नरेन्द्र के नहीं ने पत्र पर पास पिता प्यार बड़ी बड़े बम्बई बस बहुत बात बाहर बोली भाभी भी भूल मन में मुझे में एक मेरा मेरी मेरे मैं यह रह रहा था रही थी रहे थे रेणु रेणु के लगा लड़की लिया लेकिन वह वाराणसी वे शादी सब कुछ सभी सा सामने सी से स्वर हम हर हां हाथ ही हुआ हुई हुये हूं है हैं हो गया