विज्ञानभिक्षु के वेदान्द-सिद्धान्तों का समीक्षात्मक अध्ययनStudy on the philosophy of Vijñānabhikshu, 16th century. |
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अतः अपनी अपने अभेद अविद्या आचार्य आत्मा आदि इन इस प्रकार इसी ईश्वर उनका उनके उन्होंने उपाधि उसका उसकी एक और कर करके करता है करते हुए करते हैं करने कहा का कार्य किन्तु किया गया है किया है किसी के अनुसार के रूप में के लिये के समान को कोई क्योंकि चाहिये जगत् जगत् का जा सकता है जीव जो ज्ञान तो था थे दर्शन दोनों द्वारा नहीं है नहीं होता पर भी पृ० प्रकृति प्रमाण प्राप्त बुद्धि ब्रह्म की ब्रह्म में ब्रह्मसूत्र भारतीय भिक्षु ने भेद भेदाभेद मात्र मानने माना में भी मोक्ष यदि यह योग योगवार्तिकम् योगसूत्र रूप से वर्णन वह वही विचार विज्ञानभिक्षु विज्ञानामृतभाष्यम् विरोध विषय में वे वेदान्त शंकर श्रुति सत्ता सभी सम्भव सांख्य सांख्यप्रवचनभाष्यम् सिद्ध सिद्धान्त से ही स्पष्ट स्वरूप स्वीकार ही है है कि है तथा हो जाता है होकर होता है होती होते होने के कारण होने पर