Kavi-śrī mālā, Volume 10Rāshtrabhāshā Pracāra Samiti, 1962 - Hindi poetry |
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अधिक अपनी अपने अपभ्रंश अर्वाचीन इन इस उद्धव उनकी उनके उन्होंने उस उसका उसके उसमें उसे एक एवं और कर करते करनेवाली कवि का कारण काव्य किया किया है की कुछ कृष्ण के कोई क्या गई गए गया है गुजराती गुजराती भाषा गोवर्धन छे जा जाता है जीवन जैन जैसी जैसे जो तक तथा तरह तुं तू ते तो था थी थे दयाराम दयारामके दिया द्वारा नथी नव नहीं नहीं है नाम ने पद पर प्रकार प्रभाव प्राण प्रीतम प्रेम फारसी बहुत बाद भक्ति भी मध्यकालीन मन मुझे में मेरा मेरे मैं यह युग रहता है रहा रही रास रूप रूपमें रे रे लोल लिए लीला वह वे वैष्णव व्रज शब्द शुं श्याम श्री संस्कृत सकता सखी सदा समय साथ साहित्य साहित्यका सुख से हरि ही हुं हुई हुए हूँ हे है और है कि हैं हो होता है