Nyāya-kusumāñjaliḥ

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Bhāratīya-Vidyā-Prakāśana, 1968 - Nyaya - 276 pages

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1
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35

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अतः अत एव अत्र अदृष्ट अनुमान अन्यथा अपि अपि तु अभाव अर्थात् आत्मा आदि इति इति न इति भावः इत्यत्र इत्यर्थः इत्यादि इष्ट इस ईश्वर उस उसके एक एवञ्च कर कर्म का का अर्थ कार्य कार्यत्व किसी की की उत्पत्ति के आधार पर के द्वारा के रूप में के लिए को क्योंकि क्रिया घट चाहिए चिकीर्षा जन्य जाता है जिस जो ज्ञान ज्ञानस्य तत्र तथा च तथापि तर्हि तस्य तात्पर्यम् तु तो दर्शन धर्म न तु ननु नहीं हो नहीं हो सकता न्याय पक्ष पदार्थ पर परन्तु पुरुष पूर्व प्रकार प्रति प्रत्यक्ष प्रमाण प्रवृत्ति भी भी नहीं मात्र मानना मानने माना में भी यत्न यत्र यथा यदि यद्यपि यह यही या वह वा वाक्य विशिष्ट विशेष विषय वेद शक्ति शब्द सकती सति सम्बन्ध साथ सिद्ध से से ही स्यात् स्वरूप हि ही हेतु है और है कि हो सकता है होता है होती होने के कारण

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