Prātḥa kī pratīkshā

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Jagatarāma eṇḍa Sansa, 1997 - 108 pages

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4
Section 2
15
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18

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अधिक अपना अपनी अपने अब अभी आगे आज आदमी आप आया इस उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक और कभी कर करना करने कहा का कारण कि किया किसी की ओर कुछ के लिए के साथ को कोई क्या क्यों गई गए गाँव चल चला जब जा जाने जिन्दगी जी जीवन जैसे जो ठाकुर ठीक डाकू डॉक्टर तक तब तभी तुम तुम्हारी तुम्हें तो था कि थाने दस्यु दिन दिया दी दे देखा देर देवेन्द्र ने दो दोनों नहीं नहीं है पर पास पुजारी पुनः पूछा फिर बहुत बात बाद बैठ बोला बोली भी भी नहीं मुझे में मेरी मेरे मैं मैंने यदि यह यहाँ या रहा था रहा है रही थी राजन साहब रात लखिया ने लगा लगी लिया ले लेकिन लोग वह वाले सब समय से सो हम हाँ हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ है है कि हैं हो गया होकर होता है होने

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