Sūraja kā sātavām̐ ghōṛā: eka naye ḍhaṅga kā laghu-upanyāsa

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Sāhitya Bhavana, 1957 - 127 pages

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17
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अगर अतः अपनी अपने अब आई इतना इस उनका उनकी उनके उन्हें उन्होंने उस उसका उसकी उसके उसने उसी उसे ऐसा कभी कर करते करने कह कहा कहानियाँ कहानी का काम किया किसी की तरह कुछ के के लिये को कोई क्या क्यों क्योंकि गई गये घर चमन चाहिये जब जमुना जमुना की जा जाती जाते जीवन जैसे जो तक तन्ना तुम तो था और था कि थी और थीं थे दिन दिया दी देख देखा दो दोनों नहीं ने पर पहले प्रकाश प्रेम फिर बहुत बात बातें बाद बोली बोले भर भी मन महेसर दलाल माँ माणिक ने माणिक मुल्ला माणिक मुल्ला ने मुझे में में एक मेरे मैं मैंने यह यहाँ या रहा रही है रात लगता लगी लड़की लिली ले लेकिन वह वे सत्ती सब साथ सी से हम लोगों हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ है और है कि हैं हो गया होता होती होते

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