बनैले फूल: व्रतों और पर्वों की कथाए̐ |
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अपनी अपने अब आँखों आई आज आदमी आप आया आये इस उनका उनके उन्होंने उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक ओर और कभी कर करके करती करने कहानी का काम कार्तिक कि किया किसी की कुछ के के लिए कैसे को कोई कौन क्या खाना गंगा गये घर में जब जा जाता है जाती जाने जी जैसे जो तक तुम तुम्हारे तू तो था थी थे दिन दिया दी दुर्गा दे देखा देवता दो दोनों नहीं नाम ने ने कहा पर पहले पानी पार्वती फिर बड़े बरत बहुत बहू बात बोली भगवान भर भी भैया मन माँ मुँह मुझे में में ही मेरी मेरे मैं यह यहाँ रह रही थी रहे राजकुमार राजा रानी राम रूप रूपा लगा लगी लिया ले वह वे व्रत शिव सकता सब साथ सास सिर से सोना हमारे हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ है हैं हो गई हो गया होता