Anabūjhe sapane: upanyāsa

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Āratī prakāśana, 1967 - 221 pages

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4
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7
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14

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अगर अन्दर अपनी अपने अब अभी अमरनाथ ने आई आज आने आप आया इस उस उसका उसकी उसके उसने उसी उसे एक ऐसा ओर और कभी कर करता करने कल कह कहा का कानपुर कारण कालेज कि किन्तु किया किसी की कुछ के लिए के लिये को कोई क्या क्यों गई गया था गये घर चाय चारू चारू ने जब जा जाने जी जो तक तब तरह तो थी थीं थे दिन दिया दी दूसरे देखने देखा देर दो दोनों नहीं नहीं है नीलिका नीलिका ने पड़ा पर पुनः पूछा प्रकार प्रतिभा प्रतिभा ने फिर बहुत बात बातें बाद बाहर बैठ भी मुँह मुझे में मेरी मेरे मैं यह यहाँ या रहा रहा था रहे राजेश राजेश ने लगा लगी लिया लेकिन वह वाली वाले सकता सब समय सामने साहब से हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ है है कि हैं हो गई हो गया होगा होता होने

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