Rasagaṅgādhara: dvitīyamānanam |
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अत अत्र अन्वय अभाव अभेद अर्थ अर्थ का अर्थात् अलंकार आप इति इत्यादि इव इस तरह ईश्वर उत्तर उपमा उपमान उपमेय उस उसका उसी एक एवं ऐसा कर करते करने कहते हैं कहना कहा का काव्य किन्तु किया की की तरह के द्वारा के लिए के साथ केवल कैसे को कोई क्या क्योंकि गया चन्द्र चाहिए जब जाता है जैसे जो ज्ञान तत्र तथा तस्य तु तो दो दोनों दोष धर्म ननु नहीं है नास्ति ने पद पदार्थ पर प्रकार प्रकृत प्रतीति बालक्रीड़ा बोध भावः भेद मधुसूदनी मर्मप्रकाशः मुख में भी यथा यदि यह यहाँ या राजा रूप रूपक लक्षणा वस्तु वह वा वाचक वाले विशेषण विषय शक्ति शब्द सकता है सदृश समास सम्बन्ध सादृश्य सूत्र से स्यात् हि ही ही है हुआ हुए है अतः है और है कि है किन्तु है तब है यह है वह हो होगा होता है होती होने पर होने से