Sūraja meṃ lage dhabbā

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Kitāba Ghara, 1989 - 204 pages

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Contents

बात धब्बों को
12
मेरा विद्रोह जोड़ बाकी नहीं है कुलवंत कोछड़
24
दर्शकों को थप्पड़ मारकर समझाना पड़ता है
39
Copyright

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Common terms and phrases

अधिक अपनी अपने अब आज आदमी आप आपको आपने इस उपन्यास उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक ऐसा कभी कर करता करते हैं करना करने कहा कहानियां कहानी कहीं का काम कारण किया किसी की की तरह कुछ के लिए के साथ केवल को कोई क्या क्यों क्योंकि गया गये घर चाहिए जब जा जाता है जाती जाने जी जीवन जैसे जो तक तुम तो था थी थे दिन दिया दिल्ली दुष्यन्त दो नहीं नहीं है नाटक नाम ने पर पहले पास पीढ़ी फिर बहुत बात बाद बार बाहर भी भी नहीं मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने यह यही या ये रमेश बक्षी रहा है रही रहे हैं लगता है लगा लेकिन लेखक लोग लोगों वह वाले वे सकता है सब समय सामने साहित्य से स्थिति हम हर हाथ हिन्दी ही हुआ हुई हुए हूं है और है कि हो होगा होता है होती होने

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