Jaina Tamila sāhitya aura Tirukkurala

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Samyagjñāna Pracāraka Maṇḍala, 1987 - Jaina literature, Tamil - 90 pages

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1
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32
Section 3
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अध्याय अनेक अन्य अपना अपनी अपने अर्थ अर्थात् अहिंसा आज आदर्श आदि इस इस प्रकार ईसा उनका उनकी उनके उन्होंने उस उसकी उसके एक ऐसा ऐसे कभी कर करके करता है करते करना करने कर्म कवि कहते हैं कहा का काल काव्य किया किया है किसी की कु कुछ कुरल के लिए के साथ को कोई क्या क्रोध गई गया है गये ग्रंथ ग्रन्थ चाहिए चिंतामणि चेर जब जाता है जाते हैं जीव जीवक जीवन जैन धर्म जो तक तमिल तमिल भाषा तमिलनाडु तिरु तिरुक्कुरल तो था थी थे दिया दो दोनों द्वारा धर्म के नहीं नहीं है नाम ने पर पांड्य पालन पूर्व प्र प्रथम प्राप्त प्रेम भारत भाषा भी मदुरै मन में यथा यदि यह यही या राजा लोक वल्लुवर वह वासुकी वे शताब्दी श्रमण श्री संत तिरुवल्लुवर सकता है सब समय साहित्य से ही हुआ हुए है और है कि हो होता है होती होते

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