शुक्लयजुर्वेदप्रातिशाख्य एक परिशीलन

Front Cover
Kalā Prakāśana, 1999 - Vedas - 231 pages
Study of Vājasaneyīprātiśākhya of Kātyāyana, 4th or 3 cent. B.C., on Vedic phonology.

From inside the book

Contents

Section 1
1
Section 2
4
Section 3
31

9 other sections not shown

Common terms and phrases

अकार अतः अध्याय अनुदात्त अर्थ अर्थात् आदि इति इत्यादि इन इस प्रकार उदात्त उदाहरण ऋग्वेद एक एवं और करण करते हुए कहा कहते हैं कहा है का विधान कात्यायन किया गया है किया है की के अनुसार के कारण के लिए को गया है कि चाहिए जैसे जो तथा दीर्घ दो दोनों द्वारा नकार नहीं ने प०पा० पद का पदों पर उवट परवर्ती पा० पाठ पाणिनि प्रथम प्रयत्न प्रस्तुत प्रा प्रातिशाख्य प्राप्त बतलाया बाद में होने भाष्य भाष्यकार उवट भी मात्रा में विधान करते में होने पर यथा यम यह ये रूप लोप वर्ण वर्णों का वह वा वा.सं वा० प्रा० ३ वा० प्रा० में वाला वाले विकार विधान करते हुए विसर्जनीय वेद व्यञ्जन शब्द सं० सं०पा० संज्ञा संहिता सकार सन्धि सूत्र सूत्रकार से स्पर्श स्वर स्वरित स्वरूप स्वरों ही हुए कहा गया हो जाता है होता है होते हैं

Bibliographic information