शुक्लयजुर्वेदप्रातिशाख्य एक परिशीलनStudy of Vājasaneyīprātiśākhya of Kātyāyana, 4th or 3 cent. B.C., on Vedic phonology. |
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अकार अतः अध्याय अनुदात्त अर्थ अर्थात् आदि इति इत्यादि इन इस प्रकार उदात्त उदाहरण ऋग्वेद एक एवं और करण करते हुए कहा कहते हैं कहा है का विधान कात्यायन किया गया है किया है की के अनुसार के कारण के लिए को गया है कि चाहिए जैसे जो तथा दीर्घ दो दोनों द्वारा नकार नहीं ने प०पा० पद का पदों पर उवट परवर्ती पा० पाठ पाणिनि प्रथम प्रयत्न प्रस्तुत प्रा प्रातिशाख्य प्राप्त बतलाया बाद में होने भाष्य भाष्यकार उवट भी मात्रा में विधान करते में होने पर यथा यम यह ये रूप लोप वर्ण वर्णों का वह वा वा.सं वा० प्रा० ३ वा० प्रा० में वाला वाले विकार विधान करते हुए विसर्जनीय वेद व्यञ्जन शब्द सं० सं०पा० संज्ञा संहिता सकार सन्धि सूत्र सूत्रकार से स्पर्श स्वर स्वरित स्वरूप स्वरों ही हुए कहा गया हो जाता है होता है होते हैं