एक घूँट ज़हर: कहानियां

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Tārika Prakāśana, 1987 - 146 pages

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अपना अपनी अपने अब अम्मां अम्मी आंखों आई आज आप आया इस उन उनकी उन्हें उस उसकी उसके उसने उसे एक ओर और कभी कर करता करती करते करने कह कहा का कि किया किसी की कुछ के बाद के लिए के साथ को कोई क्या क्यों गई गई थी गए गया घर जब जब्बार जा जाता जाती जाने जीवन जो तक तब तरह तुम तुम्हारे तुम्हें तो था थी थीं थे दिन दिया था दी दे देखा दो दोनों नहीं नाहीद ने पति पत्नी पप्पा पर पहले पास फिर बच्चे बच्चों की बहुत बात बाबाभाई बार भर भी मन मम्मी मां मासूमा मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने मोना यह रह रहा था रही रही थी रही है रहे रात लगी लिया ले वर्ष वसुन्धरा वह शहजाद शाकिर सब समय सहर साहब सुरैया सुहासिनी से हाथ ही हुआ हुई हुए हूं है हैं हो गई होता

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