Kāvyaśāstravimarśaḥ: Saṃskr̥ta, Volume 2

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Mayaṅka Prakāśana, 1999 - Poetics - 646 pages

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अधिक अध्याय अनेक अन्य अपने अभिनवगुप्त अर्थ अलङ्कार अलङ्कारों आचार्य आचार्यों ने आत्मा आदि आनन्दवर्धन इन इस ग्रन्थ इस प्रकार इसके इसमें उनके उन्होंने उल्लेख एक औचित्य और कथन कर करके करते करने कहा का का नाम का समय कारण काव्य के काव्य में काव्यशास्त्र किया गया है किया था किया है की थी की रचना कुछ कुन्तक के अनुसार के रूप में के लिये को गई गये गुण ग्रन्थ ग्रन्थों चाहिये जा सकता जाता है जो टीका तथा तीन तो थे दण्डी दिया दो द्वारा ध्वनि ध्वन्यालोक नहीं है ने पद पर परन्तु पहले प्रकार के प्रतिपादित प्राचीन बहुत भरत भामह भाव भी भेद मम्मट महत्त्व माना यह या ये रस रसों रीति रूप से वक्रोक्ति वर्णन वामन विवेचन विषय वृत्ति वे व्याख्या शब्द श्लोक सकता है समय से ही हुआ हुये है कि हैं हो होता है होती होते हैं होने

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