Rādhā. [lekhaka] Jānakīvallabha Śāstrī, Volume 1Lokabhāratī Prakāśana, 1971 - Rādhā (Hindu deity) |
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अनुभूति अन्तर अपने अब अर्थ आँखें आई आकाश आत्मा आया इस उर उस ऊपर एक ऐसे ओर और कब कर करता कला कहाँ कहीं का काव्य कि किन्तु किसी की कुछ के के लिए केवल कैसे को कोई क्या क्यों गई गए गगन गति गन्ध गया घन घर चेतना छन्द छाया जड़ जब जल जहाँ जा जाए जाता है जाती जाने जीवन की जैसे जो ज्ञान ज्यों तक तन तब तम तुम तुम्हारा तुम्हें तो था थी थे दृष्टि दे देखा नभ नहीं ने पथ पर पवन पहले प्रकाश प्रणय प्राण प्राणों फिर फूलों भर भाव भी मधु मन माँ मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने यदि यह यहाँ या यों रस रह रहता रहा रही रहे राग राधा रूप लगता ले वन में वह वाणी संगीत सत्य सब सागर सुर से स्वर ही हुआ हुई हुए हूँ हृदय हे है हैं हो होगा होता है होती होने