Ṭhaṇḍā lohā: Tathā anya kavitāem̐Sāhitya Bhavana, 1952 - 93 pages |
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अगर अनजान अपनी अपने अब अभी आँसू आज आत्मा आत्मा की इन इस उदास उस एक और कभी कर करो कवि कविता कहीं का काले कि कि जैसे कितनी किसी की कुछ के कैसे को कोई कौन क्या क्षण गंगा गई गया गये गीत गोद में छाया जब जा जाता है जाती जाते जाने जीवन जो ज्यों ठण्डा लोहा तक तुम तुमको तुमने तुम्हारी तो था थी दर्द दिया दुनिया दूर दे दो धीरे नये नहीं ने पर पलकों पहले पागल पाती पास पुरवाई प्यार प्यास प्राण फागुन फिर फूल फूलों बन बहुत बात बाद बादल बीच भर भी भूल मगर मन मर मुझको मुझे में मेघदूत मेरा मेरी मेरे मैं मैंने मौत यह या युग ये रह रहा है रही रहे लेकिन लोहा वह विराट विश्वास वे शाम सत्य सपने सपनों सब सा साथ सी से स्वर्ग हम हर ही हुई हुए हूँ हृदय हैं होगा होठ होठों