Kumbhīpāka

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Rājapāla, 1972 - Hindi fiction - 137 pages

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5
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17
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23
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अच्छा अपनी अपने अब आई आज आप आया इन्दिरा इस उस उसके उसने उसे एक और कई कभी कमरे कम्पाउण्डर की बीवी कर कहीं का काम कि किया किसी की ओर की तरफ कुछ कुन्ती के अन्दर के लिए को कोई क्या क्यों खादी गंगा गई गए चम्पा चाय चार जा जाती जाने जी ने ठीक तक तरह तुम तुम्हारी तो था थीं थे दास दिन दिया दिवाकर दी देखा दो दोनों नहीं निर्मला नीचे ने कहा नेपाली पटना पर पहले पानी पास पूछा फिर बात बार बाहर बिहार बुआ बोला बोली भी भुवन भुवनेसरी मकान मगर मन महिम महीने मामी मुंह मुझे मुन्शी में मेरी मेरे मैं मैंने यह रह रहा था रही थी रहे थे रिक्शा लगा लगी लड़की लिया ले लेकर लेकिन वक्त वर्ष वह वाला वाली वाले वे शर्मा जी साथ सामने से हां हाथ ही हुआ हुई हुए हूं है हैं होगा होगी

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