Jindagīnāmā eka jīniyasa kāAlekh Prakashan, 2008 - 143 pages Stories based on social themes. |
Contents
Section 1 | 7 |
Section 2 | 9 |
Section 3 | 22 |
Section 4 | 30 |
Section 5 | 39 |
Section 6 | 48 |
Section 7 | 54 |
Section 8 | 66 |
Section 9 | 87 |
Section 10 | 96 |
Common terms and phrases
अपनी अपने अब आज आदमी आप आपको आया इस इसलिए इसी उनकी उनके उन्हें उन्होंने उपन्यास उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक और कभी कर करता करते करने कविता कह कहा कहीं का किया किसी की कुछ कुरुक्षेत्र के लिए के साथ को कोई क्या क्यों खुद गई गए गया घर चला जब जा जाता जाने जीवन जैसे जो ज्यादा डियर तक तब तरह तुम तो था और था कि थी थीं थे दिन दिनों दिया दिल्ली देखा नहीं ने नेता जी पता पर पहले पास फिर बस बहुत बात बाबू बार भाई भी भीतर मगर मन मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने यह यहाँ या याद ये रहा था रही रहे रामलाल दुआ रिक्शा लगता लगा लिया ले लेकिन लोग वह वहाँ वाले विष्णु खरे वे शायद सकता सब समय साब से हम हमारे हर ही हुआ हुई हुए हूँ है कि हैं हो होता