देव और दानव एक राजनैतिक क्रा̐तिकारी [sic] उपन्याससूर्य प्रकाशन, 1967 - 116 pages |
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अपना अपनी अपने अब आदमी आप आया इस उस उसका उसकी उसके उसने उसने कहा उसी समय उसे एक एकाएक ऐसा और कमला ने कर करता है करने कह का काम किन्तु किया किसी की ओर की बात कुछ के के लिये के साथ को कोई क्या गयी गाँव घर चेतराम जब जमींदार जयन्त की जयन्त ने कहा जा जाकर जिस जी जीवन जैसे जो ठाकुर तब तभी तुम तुम्हारा तो था कि थी थे दिन दिया देख देखकर देखा धरती नहीं नारी पर परन्तु पास पिता पुत्र प्रोफेसर अतुल फिर बन बना बात बाबू बोला बोली भाव भी मत मन मां मुंह मुझे में मेरा मेरे मैं मैंने यह यहां यही रधिया रधिया ने रहा था रहा है रही रहे राजकुमारी राम लिया वह वहां विक्रम ने वे व्यक्ति शराब शारदा सकता सब सभी समाज से हां हाथ ही हुआ हुए हूं है कि हैं हो गया होगा