Sthāyī pratibimba

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Sañjīva Prakāśana, 1991 - 160 pages

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Contents

Section 1
5
Section 2
9
Section 3
14

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अनुभव अपनी अपने अशोक आगे आज आया इस इसलिए ईद ईश्वर उनके उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक एवं ऐसा ओर और कभी कमरे में कमल कमलसिंह कर करके करने का कारण कि किन्तु किया किसी की की तरह कुछ के के लिए को कोई क्या क्यों गए गया था गांव घर चम्पा जब जा जाता जीवन जो जोजफ ठीक तक तब तुम तो था कि थीं दिन दिया दी दे देखा दो दोनों नहीं ने पर पास पूछा प्रेम फिर बहुत बात बाद बाहर भी भी नहीं मंजू मन मासूम मियां मुझे में मेरी मेरे मैं मैंने यदि यह यहां या रमेश बाबू रहा था रहा है रही थी रहे थे रात लगा लगी लगे लिया ले लेकिन वन्दना वरुण वह वे शरीर सब समय साथ सारे साहब सुन्दर से हम हाथ ही हुआ हुई हुए हूं है है और हैं हो गया होगा होता है होती

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