Ādhunika Hindī-Jaina sāhitya

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Bhāratīya Kalā Prakāśana, 2000 - Literary Criticism - 534 pages

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अनेक अपनी अपने अहिंसा आदि आधुनिक इन इस इसमें इसी उनकी उनके उन्होंने उपन्यास एक एवं ओर और कथा कथावस्तु कर करते करने कवि कवि ने का काल काव्य किया गया है किया है किसी की की है कुछ के कारण के लिए के साथ केवल को क्योंकि गई गद्य चरित्र जा जाता है जाती जी जी ने जीवन जीवनी जैन धर्म जो तक तथा तो था थी थे दर्शन दिया दोनों धार्मिक नहीं नहीं है नाटक निबंध ने पं० पर पर भी पृ० प्रकार प्रभाव प्रमुख प्रयोग प्राचीन प्राप्त फिर बहुत भगवान भगवान महावीर भाषा भी महाकाव्य महावीर मुनि में भी यह या युग रस रहता है रहा रूप में लेकिन लेखक वर्णन वह विचार विशेष विषय वे शैली में श्री संस्कृत सकता है सभी समय समाज साहित्य में सुन्दर से हिन्दी साहित्य ही हुई हुए है और है कि हैं हो होता है होती होने से

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