Rāshṭrīya surakshā ke svaraSanmārga Prakāśana, 1964 - 151 pages |
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अच्छा अपनी अपने अब अबीर अभी अरे अवकाश आज आप इस उमेश एक एलिजा और कर करते करना करने कहा का काम किया किसी की कुछ के लिए को कोई क्या क्यों गई गया गोपाल घर चंदन चाय चाहिए चीन चीनी जनता जब जा जाता है जाने जी जीवन जो ज्योति ठीक तक तब तुम तुम्हारे तो था थी थे दिया दे देख देश देश की दो नहीं है ने पर प्रकाश फिर बड़े बसंत बहन बहुत बात बेला भाई भारत भी मगर मनोज महेश मीना मुझे में मेरा मेरे मैं मैंने मोहन यह यह तो यह है यहाँ यही या युद्ध ये रंगीले रक्त रक्षा रमेश रहा है रही रहे हैं राष्ट्रीय रुपए लो लोग लोगों वह वाले वे संगीत सरकार सहाय साथ सामान साहब सुलेखा से सैनिक सोना स्वर हम हमारी हमारे हमें हाँ ही हुआ हुई हुए हूँ है और है कि हो होगा होली