राजमुकुट: ऐतिहासिक नाटकGaṅga-Pustakamālā Kāryālaya, 1958 - 125 pages |
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अपनी अपने अब अभी आज आज्ञा आप आशाशाह इस इसकी इसी इसे उदय को उस उसका उसके उसी उसे एक ऐसा ओर और कटार कभी कर करता करने करो कर्मचंद कहाँ का प्रवेश कि किंतु किया किसी की कुछ भी के लिये कोई कौन क्या क्यों गई गए गया चंदन चित्तौड़ छंदावत सरदार जब जय जयसिंह जा जाओ जाता जाना जो तक तलवार तुम तुमने तुम्हारे तुम्हें तू तेरा तो था थे दिन दिया दृश्य देता है दो दोनो नहीं है ने पन्ना पर परमेश्वर पुत्र प्रकट प्रजा फिर बनवीर का बहादुरसिंह बारी भय भिखारी भी नहीं महाराना मा मुझे में मेरा मेरी मेरे मेवाड़ मेवाड़ के मैं मैंने यदि यह यहाँ यही रक्त रक्षा रणजीत रहा रहे राजमुकुट राजस्थान लेकर वध वह विक्रम विक्रम को शत्रु शीतलसेनी श्राना संग्रामसिंह सब समय सहायता सिंहासन से हम हाँ हाथ हिंदी ही हुआ हुए हूँ हैं हो होकर होगा