Hindī kavitā kā samakālīna paridr̥śya

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Ālekha Prakāśana, 1978 - Hindi poetry - 103 pages

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अज्ञेय अधिक अनुभव अनेक अपनी अब आज आदि इस इसलिए इसी उनकी उनके उन्होंने उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक एवं ओर कभी कम कर करता है करते करने कवि कविता के कविता में कविताओं में कवियों का काव्य किन्तु किया है किसी की कविता कुछ कृष्ण के कारण के लिए के साथ को कोई क्या क्योंकि गया है गयी गये गीत चाहता जब जाता है जीवन की जैसे जो तक तथा तब तरह तो था थे दिया दृष्टि देश धर्मवीर भारती नये नहीं है ने पर पीढ़ी पृ० प्रकार प्रश्न बहुत बात भारत भाषा भी महाभारत में भी मैं यह या युवा ये रह रहा है रही रहे हैं राजनीति रूप में लिया लेकर वह वही विचार कविता वीणा वे व्यक्ति सत्य सब समकालीन समाजवाद सामाजिक साहित्य से स्थिति स्पष्ट स्वीकार हम हिन्दी ही हुआ है हुई हुए हूं है और है कि हो होता है होती होने

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