Muktidūta : eka pauraṇika romāṃsa |
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अंजना अंजनाके अपना अपनी अपने अपने ही अपनेको अब आई आकर आज आप आया आये इन इस उठा उठी उन उनका उनकी उनके उन्हें उन्होंने उस उसका उसकी उसके उसने उसी उसे ऊपर एक और कर कहां कहीं कि किया किसी की कुछ के केवल को कोई क्या क्षण गई है चल चली चारों ओर जब जा जाकर जाता जाती है जाना जाने जीजी जैसे जो तब तरह तुम तुम्हारे तुम्हें तो था थी थे दिन दिया दूर देख देखा दो दोनों नहीं है पड़ा पड़ी पर पवनंजय पवनंजयने पा पास प्रहस्त फिर बहुत बात बार बीच भर भी भीतर मन मानो मुझे में मेरी मेरे मैं यदि यह ये रह रहा है रही रहे हैं रावण लगा लिया लिये लेकर वसंत वह वहां वही वे सब साथ सामने सारी सारे से स्वयं हाथ ही हुआ हुई हुए हूं है कि हो गई हो गया है होकर होगा