Śrat-pratibhā, Volume 5 |
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अगर अच्छा अपनी अपने अब अरुण आज आदमी आया इतना इस उनके उस उसका उसकी उसके उसने उसी उसे एक एकादशी ऐसा ऐसी और कभी कर करके करते कह कहकर कहते कहा कहाँ कहीं काम कि किया किसी की कुछ के को कोई कौन क्या क्यों गई गये गोलोकने घर जगद्धात्रीने जब जरा जा जाकर जाता जाने जो तक तब तरफ तरह तुम तुम्हारे तो था थी थे दवा दिन दिया दे देख देखा दो नहीं है पर परन्तु पहले पास फिर बहुत बहू बात बाद बार बेटी बोली भइया भी मगर मन मा मालूम मुँह मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने यज्ञदत्त यह या रहा है रही रहे लगा लगी लड़की लिए लिया ले लोग वह वे शायद संध्या संध्याने सकता सब साथ सिर्फ सुरमा से सो हम हाँ हाथ ही ही नहीं हुआ हुई हुए हुए कहा हूँ हैं हो गई हो गया होकर होगा होता