Kibīra-vāṇī saṅgrahaLokabhāratī Prakāśana, 1970 - 250 pages |
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अथवा अधिक अनेक अन्य अपने अब अर्थ अर्थात् अवधी आदि इस इस प्रकार इसी उनका उनकी उनके उन्होंने उसी उसे एक ऐसा क० ग्रं० कबीर की कबीर ने कर करते करना करने कहते हैं कहा कहै का कारण काव्य कि कबीर किंतु किन्तु किया है किसी कुछ के लिए केवल को कोई क्या क्योंकि गई गया है चाहिए जब जा सकता जाता है जाय जैसे जो डॉ० तक तथा तब तुल० तो था थी थे दर्शन दिया दोनों द्वारा नहीं नाम पद पर परमात्मा पृ० प्रकार प्रयोग फिर बात ब्रह्म भक्ति भारत भाषा भी भोजपुरी मन मानते माना मिलता है मिलती मुसलमान में भी मैं यह यहाँ या रहा रांम राम रूप में रूप से रे वस्तुतः वह वही वे शब्द सं० सकता है सब समय सम्बन्ध में सहज साखी साथ से हम हिन्दी ही हुआ हुए है और है कि हैं हो होता है होती होते होने