Dhyānastavaḥ, Volume 2 |
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Contents
११६ भोज्य नियम विधि | 9 |
१२३ पुष्प और तुलसीदल अर्पण करने का माहात्म्य ३४ | 34 |
१२५ मायाचक्र ४६ | 49 |
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Common terms and phrases
१५ १६ २६ अन्य अपने अब अर्थात् आप इस उस उसका उसके उसको उसने एक एवं कर करके करती करते हैं करना चाहिए करने वाला करे कर्म कर्मों कहा था का कि किया करता है किया था की कुछ कृत्वा के द्वारा के लिये को को प्राप्त कोई क्षेत्र गमन गये गुह्य ग्रहण जाया जो जो भी तक ततः तत्र तथा तीर्थ तु ते तो था और थी थे दर्शन दिया देव धर्म नहीं नाम ने ने कहा परम पुत्र पुराण पूर्व प्रकार से फल फिर बहुत भगवान् भी मथुरा मनुष्य मन्त्र मम महान् मे में मेरा मेरे मैं मैंने यथा यह ये रहा राजा रूप लोक वचन वसुन्धरे वह वहां वहाँ पर वाली वाले विष्णु वे वै श्रवण सब सभी समय में सर्व साथ स्थित स्नान ही हुआ हुए हूँ हे है और है जो होकर होता है होते