Eka pleṭa sailāva

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Akshara Prakāśana, 1968 - Short stories, Hindi - 151 pages

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9
Section 2
41
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58
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अतुल अपना अपनी अपने अपने को अब आज आया इस उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक ऐसा और कभी कम्मो कर करके करती करने कहा कहीं का काम किया किसी की की ओर कुंज कुछ कुन्दन के लिए के साथ केवल को कोई क्या क्यों गई गयी घर में चली चाय जब जा जाता जाती जाने जैसे जो तक तब तरह तुम तुम्हें तो था कि थीं थे दिन दिया दे देखा दो दोनों नन्दन ने पर पहले पास फिर बड़ी बस बहुत बात बाद बार बाहर बिना बिन्नी बीच भी भी नहीं भीतर मन में माँ मुझे में ही मेरे मैं यह यहाँ या यों रहा था रहा है रही थी रहे रात लगता लगा लगी लिया ले लेकर वह वे शरद शायद शिवानी शिशिर सब समझ समय साड़ी सामने सारी सारे साल सुषमा से स्वर हर हाथ हुआ हुई हुए हूँ है कि हैं होता

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