Man̐jhadhāra kināre

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Yātrī Prakāśana, 1996 - Short stories, Hindi - 164 pages

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9

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अच्छा अनिता अपना अपनी अपने अब असलम आई आगे आया आवाज इस उस उसकी उसके उसने उसे एक और औरत कभी कर करता करना करने कहा कहीं का काम कि किसी की तरह कुछ के पास के बाद के लिए के साथ को कोई क्या क्यों गई गए गया था गयी गाड़ी घर चला चाय चुन्नी जब जा जाता जाती जैसे झुग्गी ट्रक तक तब तुम तू तो था कि थीं थे दिन दिया दिल्ली दी दीपक दे देख देखा दो नई नन्दी नहीं निक्का नीलम ने पर फिर बस बात बाहर बेबे भी मनोहर मां मुझे मुम्बई में मेरी मेरे मैं मैंने यह ये रंजो रहता रहा था रही थी राजू रात लगता लगा लगी लिया ले लेकिन लोग वह वाला वाले वीर सिंह वीर सिंह ने वे वेद शशि शादी सब सामने साल से हम हाथ ही हुआ हुई हूँ है हैं हो गया होता होती

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