MāñjhīSaṃkalpa Prakāśana; mukhya vitaraka Guptā Prakāśana,Ujjaina, 1968 - 75 pages |
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अपना अपनी अपने अब अमृत आज आता आया आये आरती इक इतना इस उर एक और कब तक कभी कर करण करता करते कह कहां का कि किस किसी की कुछ के कैसे को कोई कौन क्यों गई गगन गज़ल गम गया है गये गीत घर चिर जग जब जा जाऊं जाता है जान जीवन जो डूब तमन्ना तरह तुम तुम्हें तेरा तेरे तो था दिन दिया दिल दीप दुःख दुनियां दूर देख लिया दो द्वार धरती धरा नही नहीं नहीं है नाम नूतन ने पर पल पी प्यार प्रारण फिर बढ़े चलो बन बना बात भर भी मन मांग मिली मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैं कैसे मैंने यह यही याद युग ये रहा है रही रहे रात राह रे लिये ले लेकर लेकिन वह वो सब साथ सारे सी से से क्या होगा हम हमें हर ही हुआ हुई हुए हैं हूं हैं हो