Kavi-rahasya: arthāt, prācīna samaya meṃ kavi-śikshā-praṇālī |
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अपने अब अर्थ अर्थात् इत्यादि इन इनके इस इसका इसके इसी उक्ति उनके उसका उसके उसी उसे ऐसा ऐसे और कर करके करता है करते करना करने कवि कवि के कवियों कहते हैं कहना कहा का का वर्णन कालिदास काव्य किया किसी की कुछ कृष्णपक्ष के के काव्य के लिए केवल को कोई गया गये गुण चाहिए जब जहाँ जाता है जाते हैं जाय जिस जिसमें जैसे जो ज्ञान तक तथा तरह तीन तुलसीदास तो था थे दिन देश दो दोनों नहीं नहीं है नाम ने पद पर पुराण प्रकार के प्रतिभा प्रयोग प्रसिद्ध प्राकृत फिर बात भाषा भी भेद मन में यदि यह यहाँ या ये रचना राजा रामायण रूप लोग लोगों वचन वह विषय वेद शब्द शास्त्र शिक्षा शिव श्लोक संस्कृत सकता सब सभी समय से हिमालय ही हुआ हुए है कि है सो हो होगा होता है होती होते हैं