Priyapravāsa meṃ kāvya, saṃskr̥ti, aura darśana

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Vinoda Pustaka Mandira, 1969 - 345 pages

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अंकित अतः अत्यन्त अथवा अधिक अपना अपनी अपने अब आदि इतना इन इस इस तरह इसके इसी कारण उद्धव उनकी उनके उन्हें उस उसके उसे एक एवं कंस कथा कर करके करता है करती करते हुए कवि ने का का वर्णन कार्य काव्य किया गया है किया है किसी की की है कुछ कृष्ण के कारण के रूप में के साथ को कोई क्योंकि गये चित्र जाता है जाती जाते जीवन जैसे जो तक तथा तो था थी थे दिखाई दिया देती द्वारा नहीं पर परन्तु पुराण प्रकार प्रकृति प्रयत्न प्राप्त प्रियप्रवास प्रेम फिर ब्रज भारत भारतीय भारतीय संस्कृति भाव भी मथुरा मानव में भी यशोदा यह यहाँ यही या युग रहा रही राधा लिखा वह वहाँ विश्व वे श्रीकृष्ण श्रीकृष्ण के संस्कृति सभी समय समाज सम्पूर्ण से सेवा हरिऔध जी हिन्दी ही हुई हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते होने

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