Bhasmāvr̥tta cingārī tathā anya kahāniyāṃ

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Viplava Kāryālaya, 1968 - Short stories, Hindi - 125 pages

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3
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19
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अधिक अनेक अपना अपनी अपने अब अमला आया इस उत्तर उन उनके उन्हें उन्होंने उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक ऐसा ऐसे और कभी कर करते करने कला कहा का काम कारण कि किया किसी की ओर कुछ के प्रति के लिये के सामने केवल को कोई क्या खरे गई गयी गये घर जा जाता जाती जाते जान जाने जाय जी जीवन जैसे जो तक तरह तो थीं दिन दिनांक दिया दी दूसरे दृष्टि दे देख देखा देने दो दोनों धोती न था नहीं ने पंजाबी पण्डित पर परन्तु फिर बहुत बात भर भी मन महाराज माली मि० में मैं यह यहां या रंधीरा रह रहा था रही थी रहे थे रिक्शा रूप लगा लगे ले लोग लोगों वह वाले विचार वे शरीर सकता सब समय समीप सरकार साथ साहब साहब ने सिर सुनामा से हम हाथ ही हुआ हुई हुये है हैं हो गया होता होती होने

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