व्यथ-व्यथा |
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अपना अपनी अपने अब अल्लाह अशोक आई आज आप आया इस उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक और कर करके करने कश्मीर कहा कहां का किया किसी की की ओर की बात कुछ के पास के बाद के लिए के साथ को कोई क्या गई गए घर चला चाय जब जम्मू जानकीनाथ जाने जी जो तक तरह तीन तो था और था कि थी थे दिन दिया दिल्ली दी दुकान दूध देखा देर दो दोनों नहीं नीरजा ने पंडित पता पर पहले पूछा फारूक फिर फोन बंद बजे बशीर बसंती बाहर बेटी भी मगर मुझे मुसलमान में मेरे मैं मोहनकृष्ण मोहनकृष्ण ने यह यहां या रमज़ान जू रहा था रही रहे लगा लगी ले लेकर लेकिन वह वहां वाले वितस्ता शांता शायद श्रीनगर सकता है सामने साहब से हाथ ही ही नहीं हीरालाल हुआ हुई हुए हूं है है और है कि हैं हो होकर होगा होने