Hīrāmana |
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अछूत अपने अब आए आग आज इस उस उसका उसकी उसके उसने उससे उसे ऊपर एक ऐसा और कबीर कभी कर करता करने कह कहा कहाँ का का देश काम किया किसी की की तरह की बात कुछ कृष्ण के लिए केवल को कोई कौन क्या खेतों गई गए गया घर घरों चाहिए जन्म जब जा जाए जाता है जाते जीवन जैसे जो तक तुम तुम्हारे तेरी तेरे तो था थे दिन दिया दिल्ली दीवाली दे देख दो धरती नहीं नहीं है नाम निर्धनता नीचे ने पता पर परिवर्तन पहले पूरा फिर बन बना बहुत बार बिना बुद्ध भगवान भर भी मन मनुष्य मस्तिष्क मुसलमान में में भी यह यहाँ या ये रह रहा है रहे रात राम रूप लगा लिया ले लोग वह वहाँ वाले वे संसार सकता सच सब समाज साथ सामने सारे से स्वदेश हर हाथ ही हुआ हुई हुए है कि हैं होता है होते