ĀdyantaVāṇī Prakāśana, 1999 - 82 pages |
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अगर अटारी अपनी अपने अब आज इन इस ईश्वर उस एक ओर और कभी कर कल्पना कविताएँ का का गीत काशन वाणी प्रकाशन कि किया की कुछ के को कोई क्यों क्षण गया गयी गये जग जब जल जाता जाती है जाते जाना जाने जिन्दगी की जीवन जो तक तन तब तारों तुम तुमको तेरी तो था थी थे दिन देंगे देश दो नहीं नाम पर पार पिया प्यार प्र वाणी प्रकाशन प्रकाश प्रकाशन वाणी प्रकाशन काशन वाणी प्रकाशन वाणी प्र प्रकाशन वाणी प्रकाशन प्रव प्रीत प्रेम फिर फूल बन बन्धन भर भरी भी भूल मधुशाला मन में मिल मुझे मेरी मेरे मैं मैंने मौत यह यहाँ या याद ये रहा मनुष्य रहा हूँ रही रात रानी लिखी ले लेकिन लो वह वा न वाणी वाणी प्र वाणी वाणी प्रकाश प्रकाशन वाणी प्रकाशन काशन वाणी प्रकाशन वाणी वाप शायद सब समय से स्वर हर ही हूँ हृदय हैं हो ान