Antataḥ |
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अगर अपनी अपने अब अभी आंखों आज आदमी आप आया इन इस इस तरह उनके उन्हें उस उसका उसकी उसके उसने उसी उसे एक ओर और कई कभी कमरे में कर करते करने कहा कहीं का काम कारण कालेज कि किन्तु किसी की कुछ के पास के बाद के लिए को कोई क्या क्यों खड़ा गई गए गया था घर चन्द्र चन्द्रप्रकाश चाय चेहरे जब जा जाने जैसे जो ज्यादा ठीक तक तब तरफ तरह तुम तो थी थीं थे दिन दिया देखा देर दो नहीं नहीं है ने पर परन्तु पहले पुलिस फिर बटुक बहुत बात बार बाहर बोला बोली भी भी नहीं मन मां मुझे में मेरे मैं यह यहां या रजनी रहा था रहा है रही थी रहे थे लगा लड़के लोग लोगों वह विवेक वे शहर शायद शेफाली सकता सब सामने सिर्फ से हम हाथ ही हुआ हुई हुए हूं है हैं हो होगा होता