ऑडिट रिपोर्ट: राजकमल चौधरी की कविताएं |
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अथवा अपना अपनी अपने अब अर्थ आंखें आंखों आदमी इस उस उसकी उसके एक ही और कभी कर करता करती करते करने कविता कविताएं कहा कहीं का काली कि किंतु किया किसी की तरह कुछ के लिए के साथ केवल को कोई क्या क्यों क्योंकि गई गए गया है घर चाय जब जा जाता जाती है जाते जाने जीवन जैसे जो तक तीन तुम तुम्हारे तुम्हें तो था थी थे दास दिन दिया दीवार दो दोनों नई नदी नहीं है नाम नींद ने पटना पर पहले फिर फूल बंद बन बहुत बात बार बिल्ली भर भी मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने यह यहां यही या ये रह रहता रहती रहते हैं रहा रही है रहे रात लिया लेकिन लोग वह वही वापस शब्द शहर सफेद समय सिर्फ से स्त्री हम हमारे हर हाथ ही हुआ हुई हुए हूं है और है कि हैं हो होगा होता है