Samaya-samaya para

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Parimala Prakāśana, 1970 - 208 pages

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Section 1
36
Section 2
47
Section 3
55

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अज्ञेय अथवा अधिक अपना अपनी अपने अब इन इस इसलिए इसी उन उनके उर्दू उस उसका उसकी उसके उसी उसे एक ऐसा ऐसी कर करता है करती करना करने कला कवि कविता कविता का कवियों कहा का काम कारण काव्य कि वह किन्तु किसी की की कविता कुछ के लिए केवल को कोई गद्य गया है गयी जनता जब जाता है जाती जीवन की तक तब तरह तो था थी थे दिया दूसरे देश दोनों नयी कविता नहीं है ने पद्य पर परम्परा परिस्थितियों पहले प्रकार प्रक्रिया फिर बात भारत भाषा भी मनुष्य मानव मानसिक में में ही मैं यदि यह यही या युग रहता रहा है रही रहे लेखक वह वही विकास विचार विशेष वे व्यक्ति व्यक्तित्व शब्दों श्रौर संस्कृति सकता है सकती सब समय समाज साथ साहित्य से हिन्दी ही हुआ हुई हुए है और है कि है जो हैं हो होगा होता है होती होते होने

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