Śabdabrahmamīmāṃsā: Vākyapadīyagata Brahmakāṇḍa ke āloka meṃ

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Āī. Bī. E. Pablikeśansa, 2004 - Sanskrit language - 198 pages
Study of theory sementics and philoosphy of Sanskrit grammar as discussed in Brahmakāṇḍa, a portion of Vākyapadīya of Bhartr̥hari.

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अपने अर्थ का अर्थात् आदि इति इस इस प्रकार इसी उत्पन्न उन्होंने उपनिषद् उपर्युक्त कथन उसी प्रकार ऋग्वेद एक एवं कथन है कि कर करता है करते हुए कहा करने कहा गया है कहा है कि का कथन है काण्ड कात्यायन काल किन्तु किया है की के कारण के द्वारा के रूप में को क्योंकि जो ज्ञान डॉ तत्त्व तथा तो दर्शन दोनों द्र ध्वनि नहीं नागेश नाम ने भी पं पतञ्जलि पद्धति पर पश्यन्ती पाणिनि पृ प्रकार प्रतीत होता है प्रयोग प्राकृत ब्रह्म भर्तृहरि ने भी भेद मत मध्यमा महाभारत महाभाष्य माना है में भी मोक्ष यथा यह या वर्ण वह वही वा वा.प वाक् वाक्यपदीय वाणी वाराणसी विचार विषय वृत्ति वृषभदेव व्याकरण शक्ति शब्द का शब्दब्रह्म शास्त्री संस्कृत साथ साधु से स्पष्ट स्फोट स्फोट को स्वरूप स्वीकार हरिवृत्ति ही हुआ हुए कहा है है और हैं हो जाता है होता है कि होती होने

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