Dharmacetā

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Hindī Pracāraka Pustakālaya, 1964 - 120 pages

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Contents

Section 1
10
Section 2
36
Section 3
39

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अकाल अपनी अपने अब आप इन्द्रप्रस्थ इस इस प्रकार उत्तर उनका उनकी उनके उन्हें उन्होंने उपराज उस उसके उसने उसे एक ऐसा और कर करते करना करने कलिंग कष्ट का पालन कारण किन्तु किया किसी की ओर कुछ कुरुधर्म कुरुषमं के लिए के साथ को कोई क्या गई गए चाहते चाहिए जब जयघोष जा जाने जो ज्योतिदेव तक तब तुम तो था थी थीं दिया दे देख देखा दोनों द्वार नगरसेठ नरेश ने नहीं ने कहा पर परन्तु पास पुरुष पूछा प्रजा प्रजा के प्राप्त फिर बात बोले भी महामात्य महाराज ने महाराज पद्मसंभव महारानी मुझे में मेघलेखा मेरी मेरे मैं मैंने यदि यह यहाँ रहा रहा था रहा है रही रहे थे रहे हैं राजकुमार राजमाता राजा रानी लगे लोग वह विप्रगरण विप्रप्रधान विप्रवर विवरण वे वेदपुत्र ने श्राप समय सुनकर से स्थिति स्वयं स्वर हंस हम हमें ही हुआ हुई हुए हूँ हृदय है कि होकर होता

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