Maśāla: UpanyāsaNilābha Prakāśana, 1957 - 240 pages |
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अपना अपनी अपने अब आँखें आँखों आज आदमी आप इस उठा उनके उन्हें उस उसका उसकी उसके उसने उसी उसे एक ऐसे और करता करने कह कहा कहाँ का कानपुर काम कि किया किसी की ओर की तरह कुछ के पास के लिए को कोई क्या क्यों गयी गये घर जब जा जाने जिन्दगी जैसे जो तक तुम तो थी थीं दिन दिया दुनिया दे देख देखा देश दो नरेन नरेन ने नहीं ने ने कहा पड़ा पर पानी फिर बहुत बात बातें बाद बार बोला बोली भर भाभी भी मंजूर मजदूर मजदूरों मदीना माँ मालूम मिल मुँह मुझे में मैं यह यहाँ या याद रह रहा था रहा है रही थी रहे थे रूस लगा लगी लिया ले लेकिन वक्त वह वहाँ वे शकूर श्राज सकीना सकीना की सब समझ साथ सामने साहब सिर से हम हर हाथ ही हुआ हुई हुए है हैं हो गया होता