Kanupriyā |
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Dharmvir Bharati. सर्वप्रथम प्रस्फुटन था तो क्या तुम्हारे पास की डार पर खिली तुम्हारे कन्धों पर झुकी वह आम की ताज़ी , क्वांरी , तुर्श मंजरी ...
Dharmvir Bharati. सर्वप्रथम प्रस्फुटन था तो क्या तुम्हारे पास की डार पर खिली तुम्हारे कन्धों पर झुकी वह आम की ताज़ी , क्वांरी , तुर्श मंजरी ...
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... पर जब मुझे चेत हुआ तो मैंने पाया कि हाय सीमा कैसी मैं तो वह हूं जिसे दिग्वधू कहते हैं , कालवधू -- समय और दिशाओं की सीमाहीन पगडण्डियों पर ...
... पर जब मुझे चेत हुआ तो मैंने पाया कि हाय सीमा कैसी मैं तो वह हूं जिसे दिग्वधू कहते हैं , कालवधू -- समय और दिशाओं की सीमाहीन पगडण्डियों पर ...
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... पर घटता और बढ़ता है और अगर यह आकाशगंगा मेरे ही केश विन्यास की शोभा है और मेरे एक इंगित पर इसके अनन्त ब्रह्माण्ड अपनी दिशा बदल सकते ...
... पर घटता और बढ़ता है और अगर यह आकाशगंगा मेरे ही केश विन्यास की शोभा है और मेरे एक इंगित पर इसके अनन्त ब्रह्माण्ड अपनी दिशा बदल सकते ...
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Common terms and phrases
अक्सर अगर अनन्त अपनी अपने अपने को अब अर्जुन आज आम के आम्र इतिहास इन इस उस उसी उसे एक और तुम और मैं कनु कभी कर करती कहा है का कि तुम कि मैं कितना कितनी बार की तरह कुछ के केवल कैसे को कोई कौन है क्या क्यों क्षण खड़े गया है गयी गये गीत जब तुमने जा जाती जाना जिसे जिस्म जो तक तन तन्मयता तुम मेरे तुमने तुमसे तुम्हारे तुम्हें तो तो मैं था थी दिन दिया दो नहीं नहीं आयी नहीं है ने पगडण्डी पर पाती पास प्यार प्रतीक्षा फिर बन बाँहों बार-बार बौर भय भर भी मांग मात्र मान मुझे में मेरा मेरी मेरे मैंने यमुना यह या ये रही रहे हैं लगता है लिया ले लो वह शब्द सब समझ समय समुद्र सा सारे सिर्फ सी सुनो सृष्टि से सो ही हुआ हुई हुए हूं है और है कि हो और होकर