Sāhityikī: Hindī ke pratinidhi nibandhoṃ kā saṅgraha |
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अज्ञेय अथवा अधिक अपना अपनी अपने अब आज आदि इन इस इसी उन उनके उपन्यास उस उसका उसकी उसके उसमें उसी उसे एक एवं कर करता है करना करने कला कल्पना कहा कहानी का कारण काव्य किन्तु किया किसी की कुछ के लिए के लिये के साथ केवल को कोई क्या गया है चरित्र जब जा जाता है जाती जाते जिस जीवन जो तक तथा तरह तो था थी थे दिया दोनों नहीं है नाटक निबन्ध ने पर परन्तु प्राप्त प्रेम बहुत बात भाव भाषा भी मनुष्य मनुष्य की महाभारत मानव में में भी यथार्थ यदि यह यही या युग ये रहता है रहती रहा रूप में रेखाचित्र लेखक लोक लोग वह विकास विषय वे वेद व्यक्ति शक्ति संस्कृत सकता है सत्य सब सभी समय समाज सम्बन्ध साहित्य में से हम हमारे हमें हिन्दी ही हुआ हुई हुए है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते होने