Dēvatāōṃ kī chāyā mēṃ1953 - 184 pages |
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अच्छा अन्दर अपनी अपने अब अभी आनन्द आप इस उस उसकी उसके उसे एक एकांकी और फिर कर करता है करने कहा का काम किया किसी की की ओर कुछ के लिए के साथ को कोई क्या क्यों गया है गयी गये घर चला चेतन जब जा जाता है जाती जाते हैं जाने जी जैसे जो डा० कपूर डा० वर्मा डाक्टर तक तरह तुम तुम्हें तो था थी थे दिन दिया दे देखो देता है दो दोनों नहीं नाटक ने पंजाबी पर परसराम पहले पास पिता प्रवेश फिर बलवन्त बस बहू बात बार बाहर भाई भी भोलानाथ मरजाना मा मुझे में मेरे मैं मैंने यदि यह यहाँ या यूरोप ये रंगमंच रहा है रही रहीम रहे रोगी रौशन लगा ले वह वे श्री० सेठ श्रीमती वर्मा संभाषण सकता सब समय सुरेन्द्र से स्वर हम हाँ हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ है और है कि हैं हो गया होता